Saturday 13 April 2019

बस एक गुज़ारिश है - थोड़ा सा रो देना ...

जब माँ का "कलेजा" कटकर अलग हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !
जब मातृभूमि-रक्षण विफल हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !

जब "कश्यप-तपोभूमि" पर तिरंगा-भस्म हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !
जब "स्व-धरा" पर विदेशी ध्वज-लग्न हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !

जब भारत-भूमि का "मुकुट"-पतन हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !
जब सन संतालिस (1947) कल हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !

जब देह से "प्राणों" का "प्रथक्करण" हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !
जब पौरुष पर नपुंसकता स्थानापन्न हो जाए, थोड़ा-सा रो देना !


थोड़ा-सा रो देना के ना हम बचा सके, न तुम बचा पाओगे........
थोड़ा-सा रो देना के हम लिखते रह गए, तुम पढ़ते रह जाओगे.........
थोड़ा-सा रो देना के कल को संसार ये न कहे कि कश्मीर हमारा था ही नहीं !

(written in 20111)




No comments:

Post a Comment