Wednesday 10 May 2017

बोलती कलम


आज कलम को बोलते देखा,
दिल के राज़ खोलते देखा

नहीं चाहती वाह-वाह पाऊं इश्क की गज़लें लिखकर
ये मेरा उद्देश्य नहीं, न यूँ मेरा अपमान कर

हिन्द की लकड़ी हूँ मैं, मुझे हिन्द पर कुर्बान कर

हिन्द पर कुर्बान कर तू शब्द लिख कुछ ऐसे
सौ भगत हों उठ खड़े, वन्दे मातरम का गान कर

यूँ आज कलम को बोलते देखा,
दिल के राज़ खोलते देखा ...

- साहिल 


2 comments: